भारत में आज भी अनगिनत परिवारों के पास उनकी पीढ़ियों से चली आ रही पुश्तैनी जमीन है। लेकिन अब सरकार ने पुरखों की संपत्ति और उसकी बिक्री प्रक्रिया से जुड़े नियमों में अहम बदलाव किए हैं। अगर आप अपने पूर्वजों की जमीन को बेचने की योजना बना रहे हैं, तो इन नए नियमों को जानना जरूरी है।

अब बिना सभी वारिसों की सहमति नहीं बिकेगी पुश्तैनी जमीन
सरकार ने स्पष्ट किया है कि पुरखों की जमीन तभी बेची जा सकती है जब हर उत्तराधिकारी (co-heir) की लिखित सहमति उपलब्ध हो। केवल मौखिक सहमति या पारिवारिक समझौते के आधार पर बिक्री करने पर वह सौदा अब अवैध माना जाएगा। यह कदम परिवार में विवादों और कानूनी उलझनों को रोकने के लिए उठाया गया है।
विक्रेता को देना होगा पूरा भूमि ब्यौरा
नई व्यवस्था में अब विक्रेता को Record of Rights (भूमि अभिलेख) में अपनी संपत्ति का विवरण अपडेट कराना अनिवार्य होगा। साथ ही भूमि बेचने से पहले परिवार रजिस्टर, वारिस प्रमाण पत्र, और आधार-पैन लिंक वाले दस्तावेज रजिस्ट्री के साथ प्रस्तुत करने होंगे। इन दस्तावेजों के बिना कोई भी रजिस्ट्री अब मान्य नहीं होगी।
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हर वारिस को भेजा जाएगा बिक्री का नोटिस
कई राज्यों में अब यह व्यवस्था लागू की जा रही है कि जमीन की बिक्री से पहले हर उत्तराधिकारी को नोटिस भेजा जाएगा, ताकि भविष्य में कोई पारिवारिक सदस्य अदालत में आपत्ति न उठा सके। अगर किसी भी वारिस की सहमति के बिना संपत्ति बेची गई, तो खरीद-फरोख्त का सौदा रद्द किया जा सकता है और खरीदार को भी कानूनी परेशानी झेलनी पड़ेगी।
विवाद रोकने के लिए उठाया गया कदम
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, यह नया नियम उन मामलों को कम करेगा जहाँ परिवारों में जमीन को लेकर झगड़े बढ़ जाते हैं। किसानों और ग्रामीण संपत्ति धारकों से अपील की गई है कि किसी भी बिक्री से पहले तहसील या राजस्व कार्यालय से सारे दस्तावेजों की पुष्टि अवश्य करवा लें।
छोटी सी लापरवाही बन सकती है बड़ी गलती
पुरखों की जमीन भावनात्मक और आर्थिक दोनों रूप से महत्वपूर्ण होती है। इसलिए इसे बेचने से पहले हर कानूनी प्रक्रिया का पालन करें। थोड़ी-सी अनदेखी भी आपको लंबे समय तक संकट में डाल सकती है।