कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहां साथ छूट जाता है और आगे बढ़ना मुश्किल लगने लगता है। तलाक के बाद खालीपन सिर्फ दिल में नहीं, जेब में भी महसूस होता है। ऐसे समय में अलिमनी एक सुरक्षा कवच बनकर सामने आती है, जो नये सफर को थोड़ा आसान करती है। मगर क्या आपको पता है कि ये आर्थिक सहारा टैक्स के दायरे में भी आता है? यही जानना सबसे ज्यादा ज़रूरी है।

भारत में अलिमनी का कानूनी आधार
अलिमनी या spousal maintenance तलाक के बाद एक जीवनसाथी द्वारा दूसरे को दी जाने वाली आर्थिक सहायता है। यह प्रावधान हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 और अन्य पारिवारिक कानूनों के तहत निर्धारित होता है। इसका उद्देश्य तलाक के बाद आर्थिक संतुलन बनाए रखना है।
अलिमनी के प्रकार
- एकमुश्त अलिमनी (Lump Sum): तलाक के समय एक बार में दी जाने वाली निश्चित राशि।
- मासिक भुगतान (Monthly Alimony): हर महीने दी जाने वाली निश्चित रकम।
टैक्सेशन के नियम: लंप सम बनाम मासिक भुगतान
1. एकमुश्त अलिमनी – टैक्स से छूट:
अगर गुजारा भत्ता एकमुश्त भुगतान के रूप में दिया जाता है, तो यह कैपिटल रिसीट माना जाता है। इस पर आयकर नहीं लगता, क्योंकि यह आमदनी नहीं बल्कि एक बार में मिलने वाली राशि है।
2. मासिक अलिमनी – टैक्स योग्य:
मासिक आधार पर मिलने वाली अलिमनी को अन्य स्रोतों से आय (Income from Other Sources) माना जाता है। इसे प्राप्त करने वाले को अपने आयकर रिटर्न में शामिल करना होता है और उसी के अनुरूप टैक्स देना पड़ता है।
संपत्ति के रूप में दी गई अलिमनी का टैक्सेशन
कई बार अलिमनी नकद राशि के स्थान पर संपत्ति (जैसे घर, ज़मीन, या शेयर) के रूप में दी जाती है।
- तलाक से पहले संपत्ति का हस्तांतरण आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(x) के अनुसार “करमुक्त उपहार” माना जा सकता है।
- तलाक के बाद संपत्ति का ट्रांसफर सामान्य संपत्ति हस्तांतरण की तरह टैक्स देय बना सकता है, क्योंकि तलाक के बाद पति-पत्नी का कानूनी रिश्ता समाप्त हो जाता है।
अलिमनी देने वाले के लिए टैक्स नियम
अलिमनी का भुगतान करने वाले व्यक्ति को इस राशि पर कोई टैक्स लाभ या कटौती नहीं मिलती। यानी यह राशि उनकी कर योग्य आय से घटाई नहीं जा सकती।
कानूनी अनिश्चितता और विवाद
भारत में आयकर अधिनियम में अलिमनी के टैक्सेशन पर पूर्ण स्पष्टता नहीं है। इसलिए अलग-अलग अदालतों के निर्णयों के आधार पर तय होता है कि विशेष परिस्थिति में अलिमनी टैक्स योग्य है या नहीं।
टैक्स रिटर्न में अलिमनी का सही उल्लेख क्यों ज़रूरी है?
अगर आप मासिक अलिमनी प्राप्त कर रहे हैं, तो उसे अपने आयकर रिटर्न में दर्ज करना जरूरी है। गलत या अधूरी जानकारी देने पर आयकर विभाग जुर्माना या ब्याज लगा सकता है।