भारत का बैंकिंग क्षेत्र एक बार फिर बड़े परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के बीच नए मेगा मर्जर प्लान की तैयारी में जुट गई है। इस प्रस्ताव के तहत छोटे सरकारी बैंकों को मजबूत वित्तीय स्थिति वाले बड़े बैंकों में समाहित किया जाएगा। इसका मकसद सरकारी बैंकों को ग्लोबल स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर बनाना है।

किन बैंकों के बीच हो सकता है विलय
प्रस्तावित योजना के अनुसार, इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI), बैंक ऑफ इंडिया (BOI) और बैंक ऑफ महाराष्ट्र (BoM) को देश के तीन प्रमुख बैंकों — पंजाब नेशनल बैंक (PNB), बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) — के साथ मिलाने पर विचार किया जा रहा है।
यह कदम 2017 से 2020 के बीच हुए बैंक एकीकरण की अगली कड़ी होगा, जब 10 सरकारी बैंकों को एकीकृत कर 4 बड़े बैंक बनाए गए थे। उस समय सरकार का उद्देश्य बैकिंग प्रणाली को मजबूत और प्रभावी बनाना था, और अब वही दिशा आगे बढ़ रही है।
सरकार की रणनीति: बड़े बैंक, मजबूत अर्थव्यवस्था
सरकार का नजरिया है कि भारत की तेजी से बढ़ती डिजिटल और फिनटेक सेवाओं के बीच सरकारी बैंकों को नई प्रतिस्पर्धा के अनुरूप तैयार करने की जरूरत है। डिजिटल बैंकिंग, यूपीआई भुगतान और निजी बैंकों के विस्तार के कारण अब यह आवश्यक हो गया है कि सार्वजनिक बैंकों को रणनीतिक रूप से पुनर्गठित किया जाए, ताकि वे तकनीकी रूप से सक्षम और पूंजी के दृष्टिकोण से सशक्त बन सकें।
FY27 में हो सकती है कैबिनेट और पीएमओ में चर्चा
इस योजना पर औपचारिक चर्चा वित्त वर्ष 2026-27 (FY27) में की जाएगी। फिलहाल इसे ‘रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन’ दस्तावेज के रूप में तैयार किया जा रहा है, जिसे प्रारंभ में कैबिनेट स्तर पर मंजूरी के लिए रखा जाएगा। इसके बाद यह प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में अंतिम विचार के लिए भेजा जाएगा।
क्या होता है ‘रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन’?
‘रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन’ एक आंतरिक सरकारी दस्तावेज होता है, जिसमें किसी मीटिंग के दौरान हुई प्रमुख चर्चाओं, विचारों और सहमत बिंदुओं को दर्ज किया जाता है। इसी दस्तावेज के आधार पर आगे की नीतिगत स्वीकृतियाँ और निर्णय लिए जाते हैं। यह सरकार के नीति निर्धारण की शुरुआती प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
बैंकिंग सेक्टर को कैसे मिलेगा लाभ
अगर यह मर्जर प्लान लागू किया जाता है, तो इससे छोटे और मझोले सरकारी बैंकों को बेहतर पूंजी तक पहुंच, उन्नत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और एकीकृत नेटवर्क का लाभ मिल सकेगा। इससे सरकार का दीर्घकालिक लक्ष्य — मजबूत, टिकाऊ और विश्वस्तरीय बैंकिंग प्रणाली — को और गति मिलेगी।